
श्री गणेश के सितारे...
भगवन श्री गणेश के गजानन रूप का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह के शुकल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न काल में बरिश्चिक लगन में हुआ। गणपति जी के जन्म समय सूर्यादि सात ग्रह में से ६ ग्रह स्व राशि में थे। एक मात्र चन्द्र तुला राशी में स्थित होकर द्वादश भाव में स्थित थे। राहू केतु भी अपनी राशियों में स्थित हो कर लाभ सुत भाव में थे।
उक्त श्रेष्ट ग्रह स्थितियों में उत्पन्न श्री गणेश जी की जन्म पत्रिका में मंगल के स्वराशीगत हो कर लग्न में होने से "रूचक" नामक पञ्च महापुरुष योग, शनि स्वराशिगत होकर चतुर्थ भाव में होने से "शश" नामक पंचमहापुरुष योग, चन्द्र से केन्द्र में गुरु शुक्र होने से "गजकेसरी" योग बन रहा है। इसके अतरिक्त भगवन गणेश की जन्मपत्रिका में " अमलकीर्ति योग, अखंड राज योग, उभयचरी योग, दुरूधरा योग, शुभकर्त्री योग, छत्र योग, दामिनी योग" आदि फलदायक योग उपस्थित हैं।
चतुर्थ भाव में बली शनि सदैव अनिष्टकारी होता है। विनायक की जन्मपत्रिका में स्वराशिगत शनि का चतुर्थ भाव में होना तथा ६-८ १ पर उसकी दृष्टि होना शिरोछेदन का कारण बना। इस कुफल के पीछे स्वयम पिता शिव थे।
चन्द्र की द्वादश भाव में स्थिति गणजन को चंचल चित्त वाला बनाती है। मंगल लगन में होने के कारण वे विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोनों ही हैं। दशम भाव में बली सूर्य उनको पितृ भक्त और कर्मशील बनाने के साथ साथ जगत्प्रसिद्ध भी बनाता है।
एकादश भाव में राहू+बुध की युति उनको चतुर, तथा वाक्पटु बनाती है। उच्च राशी गत गुरु की नवम भाव में स्थिति उनको श्रेष्ट मतिधारक और प्रदाता बनाती है। केतु की पंचम भाव गत स्थिति उनको आत्म विश्वास से भरपूर रखती है....
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