Sunday, December 6, 2009

भगवान् श्री राम का जन्म दिवस ( फरवरी २१, ५११५ ईस्वी पूर्व)








भगवान् श्री राम का जन्म दिवस ( फरवरी २१, ५११५ ईस्वी पूर्व)


बाल काण्ड सर्ग १८ शलोक ८-९-१० में महार्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैतर शुकल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजित महूर्त में मध्याह्न में हुआ था। उस समय पञ्च ग्रह - सूर्य, शनि, गुरु शुक्र एवं मंगल अपनी उच्च राशि में स्थित थे। पूर्व दिशा में कर्क लगन और पुनर्वसु नक्षत्र उदित हो रहा था।

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट समतययु:
ततश्च द्वादशे मासे चैत्ऐ नावमिके तिथौ ( १-१८ -८)
नक्षत्रे अदितिदैवित्वे सवोच्चसम्स्थेशु पंचसु
ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह (१-१८-९)
प्रोध्यमाने जगन्नाथ सर्वलोकनमसकृतम
कौसल्याजन्यद रामंदिव्यलक्षणसंयुतम (१-१८-१०)
यज्ञ के पश्चात छः ऋतुयों के व्यतीत होने पर बारहवें मास चैत्र के शुकल पक्ष की नवमीं तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लगन में कौशल्या ने दिव्या लक्षण युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर राम को जन्म दिया। उस समय नौ में से पाँच ग्रह - सूर्य, मंगल, गुरु, शनि और शुक्र अपने उचांश पर थे। लगन में चन्द्र गुरु के साथ बिराजमान थे।
कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह २१ फरवरी, ५११५ ई पू आता है। इस दिन नवमी तो आती है लेकिन नक्षत्र पुष्य आता है। गणना के अनुसार जब सूर्य मेष में होता है तो नवमी पुनर्वसु नक्षत्र में नहीं हो सकती। क्योंकि सूर्य और चन्द्र के मध्य अधिकतम दूरी ९६ डिग्री २० अंश ही हो सकती है जबकि नवमी तिथि के आरम्भ के लिए यह दूरी ९६ डिग्री होनी चाहिए। अतः महारिशी वाल्मिक के लेखन में कहीं भेद है। नवमी तिथि के बारे में अन्यत्र जैसे तुलसी राम चरितमानस में भी उल्लेख मिलता है एवं रामनवमी चैत्र शुकल की नवमी को ही मनाई जाती है। बाल काण्ड के दोहा १९० के बाद की प्रथम चौपाई में तुलसीदास जी लिखते हैं ---
नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता
मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा
पवित्र चैत्र मास के शुकल पक्ष की नवमी तिथि को मधाहं में अभिजित महूर्त में श्री राम का जन्म हुआ था। अतः हम नवमी तिथि को आधार मान कर एवं नक्षत्र की अनदेखी कर राम नवमी तिथि की गणना करते हैं तो २१ फरवरी ५११५ ई पू प्राप्त होती है। इस प्रकार ७१२३ वर्ष पूरे हो कर ७१२४ वर्ष प्रारम्भ हुआ है।

श्री राम केवल कल्पना मात्र नहीं अपितु उन्हों ने इतिहास में वास्तव में जन्म लिया है। श्री राम १६वे वर्ष में ऋषी विश्वमित्र के साथ तपोवन को गए थे। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मीक रामायण के बाल काण्ड के वीस्वें सर्ग के शलोक दो से भी हो जाती है।

उनषोडशवर्षो में रामो राजीवलोचन:

न युद्धयोग्य्तामास्य पश्यामि सह राक्षसौ॥ (वाल्मीक रामायण /बालकाण्ड /सर्ग २० शलोक २)

इस शलोक में राजा दशरथ अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहते हैं- उनका कमलनयन राम सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ और उसमें राक्षसों से युद्ध करने की योग्यता भी नहीं है।

तपोवन में उन्होंने अनेक राक्षसों का संहार किया। पतिश्राप से पत्थर बन गयी गौतम नारी अहिल्या का अपने चरण स्पर्श से उद्धार किया। उसके बाद ही श्री जनक के देश मिथिला आए और शिव धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया। तपोवन से मिथिला आने के मार्ग में २३ समारक मिलते हैं। जो श्री राम के होने की सत्यता को प्रमाणित करते हैं। विवाह के १ वर्ष पश्चात् ही श्री राम ने १७ वर्ष की आयु में अयोध्या से वन के लिए प्रस्थान किया। ३१ वर्ष की आयु में अयोध्या वापस आए। उन की वन यात्रा के लगभग २०० स्मारक विद्यमान हैं जैसे - रामेश्वरम मन्दिर, उत्तर में चित्रकूट, पंचवटी, शबरी आश्रम, इलाहाबाद में भारद्वाज आश्रम, अत्री आश्रम, एवं मुख्य रूप से रामेश्वरम और श्रीलंका के मध्य में पत्थर निर्मित समुद्र में डूबा हुआ सेतु जिस पर चल कर उन्होंने वानर सेना सहित लंका में प्रवेश किया था।

श्री राम और श्री कृष्ण के मध्य में ६० राजाओं का उलेख आता है। यदि एक रजा का औसत काल ३५ वर्ष हो तो राम कृष्ण से लगभग २००० वर्ष पूर्व हुए थे। श्री कृष्ण का जन्म २१ जुलाई ३२२८ ई पू को मध्य रात्रि में मथुरा में हुआ था। कहा जाता है - जिस समय भगवन कृष्ण ने शरीर त्यागा उसी समय से कलियुग का प्रारम्भ हुआ। जिसकी गणना १८ फरवरी ३१०२ ई पू आती है। श्री कृष्ण ने १२५ वर्ष पूरे कर १२६वे वर्ष में शरीर त्यागा था। इस प्रकार श्री कृष्ण की जन्म तिथि ३२२८ ई पू तय होती है। और श्री राम की जन्म तिथि भी इस गणना से मेल खाते हुए ५११५ तय होती है.....

इति शुभम।।





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