
रत्न की अंगूठी धारण की जाए या लाकेट बनवाकर गले में धारण किया जाए, यह एक विवादस्पद प्रश्न है। इन मतों को मानने वाले अपने अपने पक्ष में विविध तर्क देते हैं। लाकेट धारण करवाने वाले विद्वान जन अपने पक्ष में "रत्न स्नान" का तर्क देते हैं।उनका कहना हैं कि रत्न गले में धारण किया जाए तो यह अधिक उपयोगी होता है। दूसरी ओर रत्न ko हाथ mein धारण करने वाले मानते हैं कि इस से सूर्य किरणों का सीधा सपर्श रत्न से होने के कारण ये विधि अधिक उपयोगी है।
दोनों ही मत अपने अपने स्थान पर उचित हैं। अनुभव में आया है कि रत्न को चाहे लाकेट में पहना जाए अथवा अंगूठी में इसके प्रभाव में कोई विशेष अन्तर नहीं पाया गया। लाकेट में पहना गया रत्न हृदय के समीप होने के कारण सम्पूर्ण शरीर में प्रभाव देता है और अँगुलियों में पहना गया रत्न नसों के माध्यम से समपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है।
रत्न ज्योतिष में बहु प्रचलित सिद्धांत "सपर्श" का है। इस मत अनुसार जो भी रत्न धारण किया जाए वो शरीर को सपर्श करता रहे। निष्कर्षतः रतन चाहे अंगूठी में पहने चाहे लाकेट में वह शरीर को सपर्श करता रहे।
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