Wednesday, December 16, 2009

माया कैलेंडर तारीख २१ दिसम्बर २०१२!!!




आजकल इलेक्ट्रोनिक मीडिया में २१ दिसम्बर २०१२ तारीख अत्यधिक चर्चा में है। इसे सभ्यता कि अंतिम तारीख, पृथ्वी के विनाश की तारीख आदि नामों से प्रचारित किया जा रहा है। इस तारीख का उद्भव "माया कैलेंडर" से हुआ है। माया कैलेंडर दक्षिणी मेक्सिको, ग्वाटेमाला, एल्सेवाडोर, बेलाइज, पश्चमी होंदारूस आदि क्षेत्रों में विकसित प्राचीन "माया सभ्यता" का कैलेंडर है। माया सभ्यता का एक अनुमान के अनुसार विकसित होना १८०० ई पू शुरू हुआ था। और नौवी शताब्दी तक अस्तित्व में रही। नौवीं शताब्दी में इसका एकाएक पतन होने लगा और यह एक सीमत क्षेत्र तक सिमट कर रह गयी.बाद में १२ -१६ शताब्दी के मध्य स्पेनिश व् अन्य साम्राजवादी ताकतों के कारण यह सभ्यता पूर्णतः विलुप्त हो गयी। अब इन देशों में पहाड़ी क्षेत्रों में ही कुछ स्थानों पर इस सभ्यता के वंशज रहते हैं।
माया सभ्यता का गणित और खगोल विज्ञान भारतीय व् यूनानी सभ्यता की तरह ही विकसित था। ग्रहों की स्थिति, सौरमान आदि के संबध में उनका ज्ञान चकित कर देने वाला था। इसी ज्ञान के आधार पर उन्होंने समय गणना पद्धतियों का विकास किया और कई कैलेंडर तैयार किये। उन में से एक कैलेंडर आज कल "माया कैलेंडर" के नाम से चर्चा में है। मीडिया के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस कैलेंडर में जो अंतिम तिथि दी गयी है वह ग्रेगरियन कैलेंडर के अनुसार २१ दिसम्बर २०१२ है। इसके बाद कोई तिथि न होने की कई बजह बताई जा रही हैं। मीडिया में प्रचारित सर्वधिक बजह यही बताई जा रही है - पृथ्वी का विनाश इस दिन होना! इसके बाद तिथियाँ न देने का कारण इसके बाद संसार का अस्तित्व न रहना।
इस तिथि पर वैश्विक प्रलय की कल्पना की जा रही है। इन्टरनेट पे कई ऐसी वेबसाईटस बन गयी हैं जिन पर उलटी गिनती के रूप में पृथ्वी के अस्तित्व के शेष बचे दिन, घंटे , मिनट और सेकंड्स बताये जा रहे हैं। इस तिथि से पूर्व में अन्य लोगों द्वारा की गयी भविषवाणियों को भी जोड़ कर देखा जा रहा है। आईनसटाईन की पृथ्वी के ध्रुवों के परिवर्तन की मान्यता को भी जोड़ा जा रहा है। हिन्दू धर्म में प्रचलित महा प्रलय को भी जोड़ा जा रहा है। अनुमान लगाये जा रहे हैं के इस दिन ऐसा क्या होगा जिस से जीवन नष्ट हो सकता है। ऐसे अनुमानों में ग्लोबल वार्मिंग, महाज्वाल्मुखी, पृथ्वी की संरचना में बदलाव, पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों का स्थान परिवर्तन, आकाश गंगा में महाविस्फोट, गामा किरणों का फटना ब्रह्माण्ड किरणों का उत्सर्जन, सौर परिवार का बिखराव, नाभकीय दुर्घटना, तीसरा विशव युद्ध, महामारी फैलना और यहाँ तक के दुसरे ग्रहों के निवासिओं का हमला। कहने का तात्पर्य यह है के विनाश के जो जो तरीके हमारी समझ में आ रहें हैं वोह वोह इस तिथि से जोड़े जा रहे हैं।
दूसरी ओर इस तिथि प्रभाव के विरुद्ध खंडन आन्दोलन भी चल रहा है। अपने अपने सिधान्तो के आधार पर खंडन की परिक्रिया संपन्न की जा रही है। वैज्ञानिक इसे "कपोल कल्पना" मानते hue किसी भी विनाश की आशंका से इनकार कर रहे हैं। अन्य क्षेत्रों के विद्वान् अपने अपने सिधान्तों से इसका खंडन कर रहे हैं। भारतीय ज्योतिषी सूर्या सिधांत, पुरानो में वर्णित युग, महायुग कल्प व्यवस्था के आधार पर इस से इंकार कर रहे हैं। गोचर कुंडली के आधार पर यह कहा जा रहा है के महा प्रलय तो नहीं होगी अपितु कुछ अप्रत्यातिश घाट सकता है जो के खंड प्रलय का आधार बन सकता है।
वास्तव में माया सभ्यता में खगोल विज्ञान विकसित अवस्था में था। उन्हों ने समय गणना को सूर्या शुक्र आदि ग्रहों की गति पर आधारित किया है। २१ दिसम्बर २०१२ भी खगोल विज्ञान ki दृष्टि से महत्वपूर्ण दिन है। क्योंकि प्रत्येक वर्ष २१ दिसम्बर के बिना २१ मार्च, २१ जून, और २३ सितम्बर भी खगोल विज्ञान में विशेष दिन माने जाते हैं। २१ मार्च और २३ सितम्बर विषुव दिन होते हैं। तो २१ जून और २१ दिसम्बर अपानंत दिन होते हैं। इनमे सूर्या क्रमश दक्षिणायन और उत्तरायण होता है। विद्वानों के अनुसार उक्त माया कैलेंडर में शरद अप्नानंत (winter solstice) को विशेष महत्व दिया गया है। और लगभग ५०० वर्ष पूर्व winter solstice से ही इस कैलेंडर का आरंभ हुआ था इस प्रकार यह कैलेंडर winter solstice पर ही ख़त्म होता है। इसमें भयभीत होने की की आवश्कता प्रतीत नहीं होती
दबी जुबान में मीडिया यह भी कह रहा है के संभवत २१ दिसम्बर २०१२ के उपरांत वैज्ञानिक विकास के कारण सभ्यता संस्कृति पूर्व से भिन्न होने के कारण इस तिथि के पश्चात माया कैलेंडर में कोई तिथि न दी गयी हो।
यह तो समय ही बताएगा के २१ दिस्मबर २०१२ को क्या होगा? परन्तु केवल इसी आधार पर के एक कैलेंडर की समाप्ति उस दिन हो रही है तो उसे महाप्रलय के रूप में प्रचारित कर दिया जाये यह उचित नहीं है...
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The World Will Not End
Mayan Calendar Prophecy
"They say that the world will end in December 2012. The Mayan elders are angry with this. The world will not end. It will be transformed." Carlos Barrios

Sunday, December 13, 2009

श्री गणेश के सितारे...



श्री गणेश के सितारे...

भगवन श्री गणेश के गजानन रूप का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह के शुकल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न काल में बरिश्चिक लगन में हुआ। गणपति जी के जन्म समय सूर्यादि सात ग्रह में से ६ ग्रह स्व राशि में थे। एक मात्र चन्द्र तुला राशी में स्थित होकर द्वादश भाव में स्थित थे। राहू केतु भी अपनी राशियों में स्थित हो कर लाभ सुत भाव में थे।



उक्त श्रेष्ट ग्रह स्थितियों में उत्पन्न श्री गणेश जी की जन्म पत्रिका में मंगल के स्वराशीगत हो कर लग्न में होने से "रूचक" नामक पञ्च महापुरुष योग, शनि स्वराशिगत होकर चतुर्थ भाव में होने से "शश" नामक पंचमहापुरुष योग, चन्द्र से केन्द्र में गुरु शुक्र होने से "गजकेसरी" योग बन रहा है। इसके अतरिक्त भगवन गणेश की जन्मपत्रिका में " अमलकीर्ति योग, अखंड राज योग, उभयचरी योग, दुरूधरा योग, शुभकर्त्री योग, छत्र योग, दामिनी योग" आदि फलदायक योग उपस्थित हैं।


चतुर्थ भाव में बली शनि सदैव अनिष्टकारी होता है। विनायक की जन्मपत्रिका में स्वराशिगत शनि का चतुर्थ भाव में होना तथा ६-८ १ पर उसकी दृष्टि होना शिरोछेदन का कारण बना। इस कुफल के पीछे स्वयम पिता शिव थे।


चन्द्र की द्वादश भाव में स्थिति गणजन को चंचल चित्त वाला बनाती है। मंगल लगन में होने के कारण वे विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोनों ही हैं। दशम भाव में बली सूर्य उनको पितृ भक्त और कर्मशील बनाने के साथ साथ जगत्प्रसिद्ध भी बनाता है।


एकादश भाव में राहू+बुध की युति उनको चतुर, तथा वाक्पटु बनाती है। उच्च राशी गत गुरु की नवम भाव में स्थिति उनको श्रेष्ट मतिधारक और प्रदाता बनाती है। केतु की पंचम भाव गत स्थिति उनको आत्म विश्वास से भरपूर रखती है....

वास्तु ने बनाया ताज को सरताज


वास्तु ने बनाया ताज को सरताज
दुनिया में कोई भी इमारत प्रसिद्ध है तो यह तय है कि उसकी बनावट वास्तु के अनुकूल होगी। ताज महल कि विशव प्रसिधि का कारण इसकी सुंदर बनावट तो है ही परन्तु इस में चार चाँद लगा रहा है इसका वास्तु के अनुकूल भूखंड पर हुआ वास्तु अनुकूल निर्माण कार्य। मुग़ल बादशाह ने अपनी प्यारी बेगम मुमताज़ महल की याद में यह इमारत बनवाई थी। इसे बनाने में भारतीय, फारसी व इस्लामी शिल्प कला का प्रयोग हुआ है जो मुग़ल वास्तुकला का सुंदर नमूना है।
दिशाओं के समांतर बनाई गयी अष्टभुजाओं की संरचना वाला भवन ताज महल वास्तु शास्त्र का एक अतिविशिस्ट उदहारण है। इसी कारण ताज बन गया है सात अजूबों का सरताज। आईये देखते हैं किताज किस तरह वास्तुशास्त्र और फ़ेन्ग्शूई के नियमों के अनुरूप है।

वस्तुशात्र कि दृष्टि से
* ताज महल को दक्षिण में बने चार बगीचों के अन्तिम छोर पर यमुना नदी के किनारे बनवाया गया है। इसकी पिछली दीवार यमुना नदी के तट पर जाकर ठहरती है। इसकी उत्तर दिशा में यमुना नदी पूर्वाभिमुख हो कर बह रही है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार यह भौगोलिक स्थिति ताज को प्रसिद्धी दिलवाने में सहायक है। जब किसी इमारत की उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार की निचाई हो और पानी का स्रोत हो तो वह स्थान अवश्य प्रसिद्धी पा लेता है।
* ताज १८६ गुना १८६ फीट के चौकोर भूखंड पर बना है। जिसके चारो कोनो पर १६२.५ फीट ऊंची मीनारें बनी हुई हैं और मध्य में २१३ फीट ऊंचा विशाल गुम्बद बना हुआ है। ताज परिसर में बने इस भूखंड के पास पूर्व दिशा का थोड़ा भाग ४ से ५ फीट नीचे हो कर वास्तु के अनुकूल है और ताज को स्थायीतव प्रदान करता है।
* ताज महल कि बनावट सुडौल और संतुलित है। इस में दो तल हैं। तहखाने में मुमताज महल और शाहजहाँ कि कब्र है। और इसकी प्रतिकृति को ऊपर वाले हाल में लगाया गया है। ताज महल परिसर के मध्य उत्तर दिशा में बना यह तहखाना इसकी प्रसिद्धी बढ़ाने में और अधिक सहायक है।
* दक्षिण दिशा स्थित ताज का प्रवेश द्वार वास्तु के अनुकूल स्थान पर है। जो सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

फेंग शूई कि दृष्टि से
* फेंगशूई का एक नियम है कि यदि पहाड़ के मध्य कूई भवन बना हो , जिसके पीछे पहाड़ कि ऊचाई हो, आगे के तरफ पहाड़ कि ढलान हो , और ढलान के बाद पानी कि झरना तालाब आदि हो तो वह भवन मशहूरी पा लेता है। फेंग शूई के इस नियम में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ताज के उत्तर में पानी है, ऊंचाई पर चबूतरा है। और उसके ऊपर मकबरा बना हुआ है।
* ताज के मकबरे की आकृति अष्टकोणीय है। फेंग शूई में अष्टकोणीय आकृति को अति शुभ माना गया है।
* फेंग शूई में संतुलित बनावट को काफ़ी महत्व दिया गया है और ताज कि बनावट पूर्णत: संतुलित है। इसके सामने दक्षिण दिशा में बने फव्वारे और बगीचे इसकी शुभता को और अधिक बढ़ाते हैं।
वास्तु के इन्हीं नियमों की अनुकूलता के कारण ताज भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में मशहूर है। इसी कारण इसे सात अजूबों में स्थान मिला है....


Monday, December 7, 2009

अंक ज्योतिष -प्रश्नोत्तरी




अंक ज्योतिष -प्रश्नोत्तरी

अंक ज्योतिष , हस्त रेखा शास्त्र, ज्योतिष एवं अन्य फलित विज्ञानों में से कौन सा सब से सटीक है?
अवश्य ही ज्योतिष सभी फलित विज्ञानों में सबसे सटीक है। यह ही सब की जननी है। ज्योतिष के बाद हस्त रेखा सटीकता में खरा उतरता है। तदुपरांत अंक ज्योतिष या अन्य आते हैं।
अंक ज्योतिष में शून्य का कोई फल नहीं?
नहीं।
अंक ज्योतिष कहाँ तक उपयोग में आता है?
अंक ज्योतिष द्वारा जातक का स्वाभाव वगैरह तो जान ही सकते हैं साथ ही २ जातकों के मूलांक एवं भाग्यांक द्वारा स्मंजस्यता भी जान सकते हैं। अर्थात मेलपाक कर सकते हैं। जातक के मूलांक , या भाग्यांक से , मित्र सम्बन्ध वाली तारिख की गणना करके महूर्त निकाल सकते हैं। जातक और उसकी कम्पनी के लिए शुभ नाम निकाल सकते हैं। जातक के लिए कौन सा वर्ष उत्तम है, यह वर्षांक द्वारा जाना जा सकता है। जातक से अंक पूछ कर प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है। इस प्रकार अंक ज्योतिष का उपयोग जातक के फल विवेचन , मिलान, वर्षफल, , प्रश्न, शुभ नाम जानने आदि के लिए किया जा सकता है।
मेदनीय ज्योतिष मै अंक ज्योतिष का क्या महत्व है?
अंक ज्योतिष को देश - विदेश में आपसी ताल मेल जानने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए देश के नाम का नामांक निकल कर आपसी मेल पाक किया जा सकता है। अमुक देश के लिए कौन सा वर्ष अच्छा रहेगा और कौन सा ख़राब यह वर्ष के अंक और देश के नामांक मै मेल द्वारा ज्ञात किया जाता है। शेयर बाज़ार में भी शेयर के नाम का नामांक निकाल कर एवं तारीख या वार स्वामी से उसका सम्बन्ध जान कर उसके उतराव चढाव का फलित किया जा सकता है।
ज्योतिष द्वारा मेल पाक कैसे करें ?
२ जातकों के मूलांक एवं भाग्यांक यदि मैत्री रखते हों तो मेलपाक शुभ रहेगा अन्यथा अशुभ। अंको के गुण - धर्म द्वारा उनका मेल पाक विस्तृत रूप से बताया जा सकता है।
वाहन , मकान, और लाटरी के नम्बरों का अंक ज्योतिष द्वारा कैसे चयन करें?
जिस प्रकार किसी जन्म तारीख से मूलांक एवं भाग्यांक निकालते हैं उसी प्रकार वाहन आदि के नम्बर का मूलांक एवं संयुकतांक निकाला जाता है। उसका जातक के मूलांक एवं संयुक्त अंक से सम्बन्ध जान कर के शुभता अशुभता का विचार किया जा सकता है।

नाम या कम्पनी के नाम का चयन कैसे करें ?
ज्योतिष से तो नाम का प्रथम अक्षर जान लेते हैं। अंक ज्योतिष द्वारा भी प्रथम अक्षर का चुनाव अपने मूलांक के अनुसार कर सकते हैं। नाम के कुछ अक्षर घटा बढ़ा कर नामांक को शुभ बनाया जा सकता है।
ज्योतिष से प्रश्न का उत्तर कैसे दें ?
प्रश्न करता से एक नम्बर पूछें४-५ या उस से अधिक अंको का। उसके योग से प्रश्न का उत्तर पता करें। यदि वह योग मूलांक एवं भाग्यांक से मेल खाता हो और मैत्री हो तो शुभ अथवा अशुभ। प्रश्न काल के युगांक का जातक के मूलांक एवं भाग्यांक से सम्बन्ध जानकर भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया जा सकता है। जैसे - प्रश्न काल ७ दिसम्बर २००९ को ७ बज कर २० मिनट पर प्रश्न किया गया तो युगांक हुआ =३। अतः प्रश्नकर्ता का मूलांक भी ३ है तो फल उत्तम होगा।
चक्र में लोशु चक्र क्या होता है?
लोशु चक्र में अंकों के स्थान निर्धारित हैं। इसमे जन्म दिनांक के सारे अंक रख दिए जाते हैं। और यह जाना जाता है के कौन सा अंक कितनी बार आया है। और कौन सा अंक नहीं आया है। उनकी जातक के जीवन में कमी रहती है। और जो अंक एक से अधिक बार आया है उसकी पूर्णता रहती है।
के अतिरिक्त हिन्दी या अन्य भाषाओं में नामांक भिन्न आते हैं तो क्या ठीक माने?
सभी भाषाओँ में अक्षरों के अंक नहीं दिए गए। हिन्दी में अक्षरों को अंक तो दिए गए हैं पर अधिक प्रचलित नहीं हैं। अतः उनके फल कितने सटीक हैं कहना मुश्किल है। अतः नाम को अंग्रेज़ी में लिख कर उसका योग कर नामांक की गणना करना उचित है।

Sunday, December 6, 2009

अंगूठी या लाकेट ?




रत्न की अंगूठी धारण की जाए या लाकेट बनवाकर गले में धारण किया जाए, यह एक विवादस्पद प्रश्न है। इन मतों को मानने वाले अपने अपने पक्ष में विविध तर्क देते हैं। लाकेट धारण करवाने वाले विद्वान जन अपने पक्ष में "रत्न स्नान" का तर्क देते हैं।उनका कहना हैं कि रत्न गले में धारण किया जाए तो यह अधिक उपयोगी होता है। दूसरी ओर रत्न ko हाथ mein धारण करने वाले मानते हैं कि इस से सूर्य किरणों का सीधा सपर्श रत्न से होने के कारण ये विधि अधिक उपयोगी है।




दोनों ही मत अपने अपने स्थान पर उचित हैं। अनुभव में आया है कि रत्न को चाहे लाकेट में पहना जाए अथवा अंगूठी में इसके प्रभाव में कोई विशेष अन्तर नहीं पाया गया। लाकेट में पहना गया रत्न हृदय के समीप होने के कारण सम्पूर्ण शरीर में प्रभाव देता है और अँगुलियों में पहना गया रत्न नसों के माध्यम से समपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है।




रत्न ज्योतिष में बहु प्रचलित सिद्धांत "सपर्श" का है। इस मत अनुसार जो भी रत्न धारण किया जाए वो शरीर को सपर्श करता रहे। निष्कर्षतः रतन चाहे अंगूठी में पहने चाहे लाकेट में वह शरीर को सपर्श करता रहे।

भगवान् श्री राम का जन्म दिवस ( फरवरी २१, ५११५ ईस्वी पूर्व)








भगवान् श्री राम का जन्म दिवस ( फरवरी २१, ५११५ ईस्वी पूर्व)


बाल काण्ड सर्ग १८ शलोक ८-९-१० में महार्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैतर शुकल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजित महूर्त में मध्याह्न में हुआ था। उस समय पञ्च ग्रह - सूर्य, शनि, गुरु शुक्र एवं मंगल अपनी उच्च राशि में स्थित थे। पूर्व दिशा में कर्क लगन और पुनर्वसु नक्षत्र उदित हो रहा था।

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट समतययु:
ततश्च द्वादशे मासे चैत्ऐ नावमिके तिथौ ( १-१८ -८)
नक्षत्रे अदितिदैवित्वे सवोच्चसम्स्थेशु पंचसु
ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह (१-१८-९)
प्रोध्यमाने जगन्नाथ सर्वलोकनमसकृतम
कौसल्याजन्यद रामंदिव्यलक्षणसंयुतम (१-१८-१०)
यज्ञ के पश्चात छः ऋतुयों के व्यतीत होने पर बारहवें मास चैत्र के शुकल पक्ष की नवमीं तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लगन में कौशल्या ने दिव्या लक्षण युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर राम को जन्म दिया। उस समय नौ में से पाँच ग्रह - सूर्य, मंगल, गुरु, शनि और शुक्र अपने उचांश पर थे। लगन में चन्द्र गुरु के साथ बिराजमान थे।
कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह २१ फरवरी, ५११५ ई पू आता है। इस दिन नवमी तो आती है लेकिन नक्षत्र पुष्य आता है। गणना के अनुसार जब सूर्य मेष में होता है तो नवमी पुनर्वसु नक्षत्र में नहीं हो सकती। क्योंकि सूर्य और चन्द्र के मध्य अधिकतम दूरी ९६ डिग्री २० अंश ही हो सकती है जबकि नवमी तिथि के आरम्भ के लिए यह दूरी ९६ डिग्री होनी चाहिए। अतः महारिशी वाल्मिक के लेखन में कहीं भेद है। नवमी तिथि के बारे में अन्यत्र जैसे तुलसी राम चरितमानस में भी उल्लेख मिलता है एवं रामनवमी चैत्र शुकल की नवमी को ही मनाई जाती है। बाल काण्ड के दोहा १९० के बाद की प्रथम चौपाई में तुलसीदास जी लिखते हैं ---
नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता
मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा
पवित्र चैत्र मास के शुकल पक्ष की नवमी तिथि को मधाहं में अभिजित महूर्त में श्री राम का जन्म हुआ था। अतः हम नवमी तिथि को आधार मान कर एवं नक्षत्र की अनदेखी कर राम नवमी तिथि की गणना करते हैं तो २१ फरवरी ५११५ ई पू प्राप्त होती है। इस प्रकार ७१२३ वर्ष पूरे हो कर ७१२४ वर्ष प्रारम्भ हुआ है।

श्री राम केवल कल्पना मात्र नहीं अपितु उन्हों ने इतिहास में वास्तव में जन्म लिया है। श्री राम १६वे वर्ष में ऋषी विश्वमित्र के साथ तपोवन को गए थे। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मीक रामायण के बाल काण्ड के वीस्वें सर्ग के शलोक दो से भी हो जाती है।

उनषोडशवर्षो में रामो राजीवलोचन:

न युद्धयोग्य्तामास्य पश्यामि सह राक्षसौ॥ (वाल्मीक रामायण /बालकाण्ड /सर्ग २० शलोक २)

इस शलोक में राजा दशरथ अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहते हैं- उनका कमलनयन राम सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ और उसमें राक्षसों से युद्ध करने की योग्यता भी नहीं है।

तपोवन में उन्होंने अनेक राक्षसों का संहार किया। पतिश्राप से पत्थर बन गयी गौतम नारी अहिल्या का अपने चरण स्पर्श से उद्धार किया। उसके बाद ही श्री जनक के देश मिथिला आए और शिव धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया। तपोवन से मिथिला आने के मार्ग में २३ समारक मिलते हैं। जो श्री राम के होने की सत्यता को प्रमाणित करते हैं। विवाह के १ वर्ष पश्चात् ही श्री राम ने १७ वर्ष की आयु में अयोध्या से वन के लिए प्रस्थान किया। ३१ वर्ष की आयु में अयोध्या वापस आए। उन की वन यात्रा के लगभग २०० स्मारक विद्यमान हैं जैसे - रामेश्वरम मन्दिर, उत्तर में चित्रकूट, पंचवटी, शबरी आश्रम, इलाहाबाद में भारद्वाज आश्रम, अत्री आश्रम, एवं मुख्य रूप से रामेश्वरम और श्रीलंका के मध्य में पत्थर निर्मित समुद्र में डूबा हुआ सेतु जिस पर चल कर उन्होंने वानर सेना सहित लंका में प्रवेश किया था।

श्री राम और श्री कृष्ण के मध्य में ६० राजाओं का उलेख आता है। यदि एक रजा का औसत काल ३५ वर्ष हो तो राम कृष्ण से लगभग २००० वर्ष पूर्व हुए थे। श्री कृष्ण का जन्म २१ जुलाई ३२२८ ई पू को मध्य रात्रि में मथुरा में हुआ था। कहा जाता है - जिस समय भगवन कृष्ण ने शरीर त्यागा उसी समय से कलियुग का प्रारम्भ हुआ। जिसकी गणना १८ फरवरी ३१०२ ई पू आती है। श्री कृष्ण ने १२५ वर्ष पूरे कर १२६वे वर्ष में शरीर त्यागा था। इस प्रकार श्री कृष्ण की जन्म तिथि ३२२८ ई पू तय होती है। और श्री राम की जन्म तिथि भी इस गणना से मेल खाते हुए ५११५ तय होती है.....

इति शुभम।।





Saturday, December 5, 2009

हाथ में छिपा है मीडिया सफलता का राज़




हाथ में छिपा है मीडिया सफलता का राज़

भारत में ५००० से अधिक दैनिक ,१६००० साप्ताहिक . ६०० पाक्षिक अख़बार और १०००० मासिक पत्रिकाएं छपती हैं. ये विशव में सबसे अधिक है. आज १०० के आस पास हिंदी, अहिन्दी व् विदेशी न्यूज़ चेन्नल हैं.
मीडिया रोज़गार का एक सक्षम माद्यम बन गया है.

मीडिया और हस्त रेखा शास्त्र का सम्बन्ध भी पुराना है. नारद मुनि हस्तरेखा शास्त्र के प्राचीनतम ग्रंथकार हैं. उनका सम्बन्ध समाचार और हस्तरेखा दोनों से ही है. अगर आप ने स्नातक स्तर तक की पुस्तक पढ़ी होगी तो उसमे नारद मुनि को प्रथम समाचार संवादाता कहा गया है. नारद जी इधर से उधर समाचार सुनाने का कार्य किया करते थे.

कश्यप मुनि ने वेद-ग्रंथों में एक शलोक लिखा है, जिसमे उन्होंने १८ व्यक्तियों को हस्तरेखा शास्त्र व ज्योतिष का धुरंधर आचार्य माना है. इनमें नारद जी आठवें स्थान पर हैं. राम चरित मानस के बालकाण्ड की शलोक संख्या ५७ के अनुसार -- महारिशी नारद जी ने पर्वत राज हिमालय एवं मैना की पुत्री पारवती का हाथ देख कर कहा ----

"जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल वेष
अस स्वामी एही कहं , मिलही परि हस्त रेख"


अर्थात हे नरेश हिमायला! पारवती की हस्त रेखाएं बताती हैं के इसका पति त्रिलोक स्वामी हो कर भी वैरागी होगा. सर्व्मंगाल्कारी होगा किन्तु अमंगलकारी वेशभूषा धारण करेगा. लम्बे केश रखेगा किन्तु कामदेव जैसा मनमोहक होगा.
इन उदाहर्नो से पता चलता है के मीडिया और हस्तरेखा का साथ और कार्य पुराना है. प्राचीन काल में जब अखबार या टीवी आदि नहीं थे तब ऋषि मुनि या ग्रन्थ लेखक ही समाचारों का या तत्कालीन घटनायों का प्रसारण किया करते थे.

मीडिया आज सबसे अधिक ग्लेमरयुक्त प्रचारयुक्त और रोजगार से भरा क्षेत्र है. युवा वर्ग इस और अत्यधिक अगर्सर हो रहा है.

आईये हस्त रेखाओं से देखें कि मिडिया में कौन सफल होगा कौन नहीं

* यदि हाथ में गुरु और शनि ग्रह उन्नत हो , बुध कि ऊँगली टेढ़ी हो और शनि कि सीधी हो तो ऐसे जातक रेडियो पत्रकारिता में सफल होते हैं .

* हाथ में अगर गुरु, सूर्य , और शनि कि उँगलियाँ सीधी हो, सूर्य पर्वत अत्यधिक उठा हो और उस पर एक से अधिक साफ़ सुथरी रेखाएं हो . तो व्यक्ति सफल पत्रकार होता है.

* हाथ में अगर मस्तिषक रेखा शाखान्वित हो , सूर्य की ऊँगली बिलकुल सीधी साफ सुथरी और लम्बी हो, उँगलियाँ पतली हों और हाथ कोमल हो तो ऐसे लोग उच्च शरेनी के पत्रकार होते हैं.

सभी ग्रह पर्वत सशक्त हों हाथ चिकना व नर्म हो जीवन रेखा गोल, सूर्य रेखा एक से अधिक व लम्बी हो हाथ हल्का पर भरी बनावट का हो तो ऐसे लोग उच्च कोटि के पत्रकार
होते हैं...